शिवराज जी अपने पसंद के अफसरों को जनसंपर्क विभाग की कमान सौप कर आप बँटाढार वाली नीति का ही अनुसरण कर रहे है.


 


मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस की सरकार को वाया सिंधिया पटकनी देकर चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान कभी तो सरेंडर मोड मे और कभी कठोर रवैया अपनाते दिख रहे है.


पहले लंबे इन्तिज़ार के बाद मंत्रिमण्डल का विस्तार और उसमे भी बकौल उनके विष पीने की बात करना और फिर विभागों के बंटवारे में भी उनकी मंशा को दरकार करते हुए सब कुछ दिल्ली से तय होना ये साफ़ संकेत है, कि शिवराज को एक मजबूत नहीं एक मजबूर मुख्यमंत्री के रूप मे भाजपा हाई कमान रखना चाहता है.


सिंधिया समर्थक मंत्री तो अभी से ये मान कर ही चल रहे है कि उनके मुख्यमंत्री तो सिंधिया जी ही है भले ही मुख्यमन्त्री पद की शपथ शिवराज सिंह चौहान ने ली हो. मग़र शिवराज सिंह चौहान ने जनसंपर्क जैसा महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखकर एक बहुत बड़ी भूल कर दी ये गलती दिग्विजय सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल मे की थी नतीज़ा उस वक़्त ये हुआ कि जो छोटे और मझोले समाचार पत्रों मे सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ छपता था वो दिग्विजय सिंह तक नहीं पहुंच पाता था जब प्रदेश के छोटे से एक अखवार ने दिग्विजय सिंह के कॉंग्रेस राज़ को बंटाढार लिख दिया तो भाजपा ने इसे ही सड़कों और बिजली की खराब स्थिति से जोड़ कर दिग्विजय सिंह को बँटा ढार मुख्यमंत्री के रूप मे चुनाव मे पानी पी पी के खूब कोसा नतीजा भाजपा को प्रदेश मे भारी जीत मिली आज भी भाजपा के नेता और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, दिग्विजय को बंटाढार मुख्यमंत्री के रूप मे ही याद करते है. तो कहने का उद्देश्य ये है कि लोकतंत्र मे मीडिया की ज्यादा अनदेखी कभी कभी अच्छे अच्छे राजनेताओं की राजनीति की चूलें हिला देती है. मुख्यमंत्री शिवराज जी जनसम्पर्क विभाग में अपने पसंदीदा अफसरों को बिठा कर उनके भरोसे छोड़कर आप दिग्विजय वाली गलती दोहरा रहे है. जनसंपर्क में आलीशान कमरों में बैठने वाले अफसर अग्रेजी अखवार और कुछ तथा कथित चैनल को विज्ञापनों का पैकेज डील देकर उन पत्रकारो को ही मुहँ लगाकर आपके गुणगान की ख़बरें लिखवाइ जाती है, और फिर ये अफसर आप के बंगले मे रोज़ हाजिर होकर ये बताना और जतलाना नहीं भूलते की सरकार आप का इकबाल कायम है तो प्रदेश के मालिक बँटाढार वाली गलती ना दोहराए.


सैफुद्दीन सैफी